Nalanda University History In Hindi: जानिए नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, महत्व और इसे किसने जलाया

Nalanda University History In Hindi: अपने इतिहास व उच्चतम शिक्षा के लिए देश भर में जानी जाने वाली नालंदा विश्विद्यालय इकलौती ऐसी संस्था है जो पिछले 1600 वर्षों से किताबी एवं नैतिक शिक्षा के द्वारा लाखों बच्चों का मार्गदर्शन करती आई है। हाल ही में 19 जून 2024 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के एक नए कैंपस का उद्घाटन किया गया।

बच्चों की शिक्षा में कोई भी समझौता न करने वाली यह संस्था एक बार फिर वही ऊर्जा और प्रकाश लिए बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए स्थापित की गई है। हालांकि पिछले 1600 वर्षों से छात्रों की शिक्षा की ओर अतुलनीय योगदान देने वाली यह विश्वविद्यालय 1197 ए.डी. के दौरान टर्की आतंकवादियों के द्वारा बुरी तरह तबाह कर दी गई थी। यदि आप भी नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े रोचक किंतु चौका देने वाले ऐतिहासिक सच जानने में इच्छुक हैं तो इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पडें।

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Nalanda University History In Hindi क्या है नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास?

आज से करीब 1600 वर्ष पहले पांचवी सदी के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। नालंदा विश्वविद्यालय न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय (residential university) था। बिहार के राजगीर इलाके में स्थित इस विश्वविद्यालय में दुनिया भर से लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। खुले कमरे, मैदान और अपनी नौ मंजिल ऊंची लाइब्रेरी से छात्रों का दिल जीतने वाले इस विश्वविद्यालय में चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका, एशिया और दुनिया भर के कई इलाकों से छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।

आयुर्वेद, गणित भूगोल, वैदिक एवं राजनीति जैसे विषय इस विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाते थे। गणित में अव्वल, आज तक किताबों में जिनका वर्णन किया जाता है, जी हां आर्यभट्ट जी जिन्होंने शून्य (0) का आविष्कार किया था, वह भी इस विश्वविद्यालय में छटी सदी के दौरान गुरु रहकर कई छात्रों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10000 से भी ज्यादा छात्र और कुल 2000 शिक्षक थे। भारत व विश्व भर में अपनी ईमानदारी व होशियारी के लिए प्रसिद्ध  कई सारे विद्वान इस विश्विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। हर्षवर्धन, धर्मपाल, धर्मकृति, बसुबंधु, आर्यवेद और नागार्जुन, कहने के लिए कुछ नाम हैं जो अपनी विद्वता का प्रदर्शन विश्व भर में कर चुके हैं।

माना जाता है की आठवीं व नवी सदी के दौरान पाल वंश के राज्य में नालंदा विश्वविद्यालय ने काफी तरक्की की। इस विश्वविद्यालय में छात्रों को दाखिला मिलना काफी कठिन माना जाता था और केवल मेरिट के आधार पर ही दाखिला मिलता था। देशभर और पूरे विश्व में से विद्वान लोग इस विश्वविद्यालय में दाखिला लेने को व्याकुल रहते थे और दाखिला हो जाने पर उनके खान-पान, रहने व शिक्षा की व्यवस्था विश्वविद्यालय द्वारा मुफ्त में की जाती थी।

कैसे हुई थी स्थापना? शुरुआती सफ़र:

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना आज से पूरे 1600 वर्ष पहले पांचवी सदी में हुई थी। बिहार (मगध) के राजगीर इलाके में स्थित यह विश्वविद्यालय की शुरुआत गुप्ता वंश (Gupta Dynasty) के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। कई सौ सालों तक नालंदा विश्वविद्यालय राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छात्रों को अकल्पनीय शिक्षा प्रदान करता रहा परंतु करीब 800 साल तक शिक्षा की ओर अविस्मरणीय समर्पण देने वाले इस विश्वविद्यालय पर एक ऐसी घटना बीती कि उसके बाद यह कई सालों तक दोबारा उच्च शिक्षा संस्थानों में पहले की भाँति अपनी जगह नही बना सका।

किसने किया हमला?

इतिहास में नालंदा विश्वविद्यालय की बर्बादी की शुरुआत सन् 1193 में हुई थी, जब खिलजी वंश के military general, बख्तियार खिलजी ने इस संस्था पर आक्रमण किया था। पूरे 3 महीने के अकल्पनीय युद्ध और बर्बादी के इस दुखद सफर के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय ने अपने कई कीमती दस्तावेज, अपना अस्तित्व और अपना औहदा सब कुछ खो दिया था। इस आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के पास कुछ भी नही बचा और इसके परिसर व खूबसूरत लाइब्रेरी को भी बुरी तरह से नष्ट कर दिया गया।

पुनर्स्थापना की कहानी:

सन् 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन ने नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में न केवल जाना बल्कि इसको दोबारा से जनता से रूबरू भी कराया। सन् 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने आधिकारिक तौर पर इसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में पहचान भी दिलवाई थी।

परंतु इतने ऐतिहासिक और महान विश्वविद्यालय को केवल अस्थाई रूप से पहचान दिलवाना ही काफी ना था। अतः सन् 2006 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इसे पुनर्स्थापित करने का विचार किया। सन् 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना के लिए नालंदा विश्वविद्यालय बिल के नाम से एक कानूनी बिल जारी किया गया जिसके बाद 2014 में एक बार फिर से बिहार के राजगीर इलाके में अस्थाई रूप से नालंदा विश्वविद्यालय का संचालन किया गया।

सन् 2016 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री प्रणब मुखर्जी जी ने राजगीर के पिलखी गांव में नालंदा विश्वविद्यालय के स्थान के लिए आधारशिला रखी और 2017 में इसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ। अंततः भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जून को नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया तथा अब यहाँ विद्यार्थी पढ़ाई कर सकेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा की नालंदा यूनिवर्सिटी को जलाया जा सकता है किन्तु मिटाया नहीं जा सकता।

निष्कर्ष

सरकार द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय की पुनःस्थापना एक ऐतिहासिक और गौरवशाली कदम है। यह संस्थान भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है। नालंदा विश्वविद्यालय न सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान है, बल्कि एक सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत का केंद्र भी है।

इसके पुनर्निर्माण से यह स्पष्ट होता है कि भारत न केवल अपनी प्राचीन धरोहर को सहेजने के प्रति प्रतिबद्ध है, बल्कि वैश्विक शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना योगदान देने के लिए तत्पर है। नालंदा विश्वविद्यालय का यह नवयुग एक नए शिक्षा और ज्ञान के एक ऐसे युग की शुरुआत है जो आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल करेगा।

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नमस्कार, मेरा नाम प्रियांशी है और मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ। मुझे सरकार द्वारा लागू की गयी योजनाएं और अन्य सरकारी जानकारी के विषय में जानने व लिखने का बेहद शौक है। मैं यह उम्मीद करती हूँ की आपको मेरे आर्टिकल व ब्लॉग जानकारी योग्य लगेंगे और इन्हे पढ़ कर आपको जो भी जानकारी चाहिए वह प्राप्त होगी।

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